वनस्पति गुंजा के प्रयोग करने से आपका व्यक्तित्व हो जायेगा तेजस्वी

नमस्कार मित्रों, आज हम बात करेंगे चमत्कारी जड़ी गुंजा के बारे में, गुंजा एक फली का बीज है और इसको रत्ती के नाम से भी जाना जाता है, इसकी बेल काफी कुछ मटर की तरह ही लगती है, इसे अब भी कहीं कहीं आप सुनारों की दुकानों पर देख सकते हैं।
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तंत्र शास्त्र में ये जितनी मशहूर है उतनी ही आयुर्वेद में भी है, आयुर्वेद में श्वेत गूंजा का ही अधिक प्रयोग होता है और साथ ही इसके मूल का भी जो मुलैठी के समान ही स्वाद और गुण वाली होती है, इसी कारण कई लोग मुलैठी के साथ इसके मूल की भी मिलावट कर देते हैं, वहीं रक्त गूंजा बेहद विषैली होती है। गुंजा की तीन प्रजातियां मिलती है।

गुंजा की पहली प्रजाति है लाल काले रंग की, ये प्रजाति मुख्यत तंत्र शास्त्र में ही प्रयोग होती है। दूसरी है सफेद गुंजा में भी एक सिरे पर कुछ कालिमा रहती है और यह आयुर्वेद और तंत्र दोनों में ही सामान रूप से प्रयुक्त होती है, ये लाल की अपेक्षा दुर्लभ होती है और तीसरी है काली गुंजा जो दुर्लभ है, तंत्र प्रयोगों में ये बेहद महत्वपूर्ण है, इन तीन के अलावा एक अन्य प्रकार की गुंजा पायी जाती है पीली गुंजा ये दुर्लभतम है क्योंकि ये कोई विशिष्ट प्रजाति नहीं है किन्तु लाल और सफ़ेद प्रजातियों में कुछ विकृति होने पर उनके बीज पीले हो जाते हैं।

वनस्पति गुंजा के दो प्रयोग

आप शुद्ध गंगा जल या नल के साफ पानी में गुंजा की जड़ को चंदन की तरह घिसें, इसे आप किसी ब्राह्मण या कुंवारी कन्या के हाथों से घिसवा लें, अब यह लेप माथे पर चंदन की तरह लगायें। आपको सभी जगह विशिष्ट सम्मान प्राप्त होगा।

आप गुंजा की जड़ को बकरी के दूध में घिसकर अपनी दोनों हथेलियों पर इसका लेप करे और रगड़े, कुछ दिन तक यह प्रयोग करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि तीव्र होती है, चिंतन, धारणा आदि शक्तियों में प्रखरता व तीव्रता आती है, कई जगहों पर विवाह के समय लाल गुंजा वर के कंगन में पिरोकर पहनायी जाती है, गुंजा की माला आभूषण के रूप में पहनी जाती है।इसे उन्नति का प्रतीक माना जाता है।

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