एक हेक्टेयर में 50 क्विंटल सरसों उगाने में सफलता!

: जबलपुर स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो विजय सिंह तोमर का कहना है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए जेनेटिकली मॉडिफाइड बीजों का उपयोग करने की दलील सही नहीं है। जीएम फसलों पर जोर दिया जाता है क्योंकि ये कीटों से अधिक सुरक्षित रहती हैं और इनकी उपज बेहतर होती है। परंतु अच्छी कृषि तकनीक अपनाकर भी हम इतना उत्पादन कर सकते हैं जो शायद जीएम फसल भी नहीं दे सकती।

उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने अपने प्रयोग में 200 किसानों की मदद से प्रति हेक्टेयर 40 से 50 क्विंटल सरसों उत्पादित करने में सफलता हासिल की जबकि सामान्यतौर पर एक हेक्टेयर में 20 से 25 क्विंटल तक ही पैदावार होती है। जीएम फसलों के नुकसान के बारे में उन्होंने कहा कि इससे फसल की देसी किस्में समाप्त हो रही हैं। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अभी देश में बैंगन की 400 किस्में उगाई जा रही हैं जिनके अलग-अलग गुण हैं। परंतु, अगर एक बार बीटी बैंगन आ गया तो फिर केवल वही किस्म बचेगी जो ज्यादा उत्पादन देगी।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय लगातार ऐसे शोध कर रहा है जिनमें बिना जीन के साथ छेड़छाड़ किए देसी किस्मों को बचाते हुए उपज में इजाफा किया जा सके। अब तक 79 फसलों की 321 किस्में विश्वविद्यालय ने विकसित की हैं। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने चावल और काबुली चने की ऐसी कई किस्म तैयार की हैं जो अत्यंत कम समय में पैदावार देती हैं। वहीं विश्वविद्यालय ने सिंचित रकबे में दाल की प्रबंधनयोग्य खेती की शुरुआत की है।

राज्य की तकरीबन 25 फीसदी की कृषि विकास दर में भी विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई किस्मों, तकनीकों और उपकरणों का अहम योगदान है।

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