जिला शहडोल मध्यप्रदेश में विराट मंदिर ।

मै कुलदीप सिंह मेरा जन्म स्थान ग्राम- सिलवार जिला- सीधी मध्यप्रदेश में हुआ।

शहडोल जिले का संक्षिप्त परिचय :-

शह़डोल जिला मध्यप्रदेश के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। इसका गठन 1959 मे किया गया।

शहडोल जिले का कुल क्षेत्रफल 5671 वर्ग कि॰मी॰ है। यह पूर्व में अनुपपूर, दक्षिण में मंडला और बिलासपुर, उत्तर में सतना एवं सीधी तथा पश्चिम में उमरिया जिले से घिरा हुआ है। यह जिला पूर्व से पश्चिम में 110 वर्ग कि.मी.. तथा उत्तर से दक्षिण में 170 कि॰मी॰ तक फैला हुआ है।

यह जिला 22 डिग्री 38’ डिग्री उत्तरी अक्षांश से 24डिग्री 20’ उत्तरी अक्षांश और 30 डिग्री 28’ पूर्व देशांतर से 82 डिग्री 12’ पूर्वी देशांतर में स्थित हैं। यह जिला डेक्कन प्लेटू के उत्तर-पूर्वी भाग में आता है। जिले का भौगोलिक क्षेत्रफल 5671 वर्ग कि॰मी॰ है। शहडोल जिले के निकट डिंडौरी, जबलपुर, सतना, सीधी, उमरिया, अनुपपूर और रीवा जिले हैं।

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मै जनवरी 2018 से शहडोल जिला में रह रहा हूँ मुझे यह स्थान बहुत पसंद आया यहाँ पर मै विराट मंदिर घूमने गया ।
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इस मंदिर को विराट मंदिर कहा जाता है। कहते हैं कि महाभारत में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान जिस विराट नगर का वर्णन है वह यही विराट नगर है।

यहाँ के सम्राट राजा विराट थे। समीप ही बाणगंगा में पाताल तोड़ अर्जुन कुंड स्थित है। शहडोल का पूर्व नाम सहस्त्र डोल बताया जाता है। कलचुरी राजाओं का राज जहाँ भी रहा उन्होने वहाँ सुंदर मंदिरों का निर्माण कराया है।

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मंडप ढहने के कारण पुन: निर्मित दिखाई दे रहा था।

केयर टेकर ने बताया कि 70 साल पहले मंदिर के सामने का हिस्सा धराशायी हो गया था, जिसे तत्कालीन रीवा नरेश गुलाबसिंह ने ठीक कराया था। उसके बाद ठाकुर साधूसिंह और इलाकेदार लाल राजेन्द्रसिंह ने भी मंदिर की देखरेख पर ध्यान दिया।

अब यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है। मंदिर का मुख्य द्वार शिल्प की दृष्टि से उत्तम है। मुख्यद्वार के सिरदल पर मध्य में चतुर्भुजी विष्णु विराजित हैं। बांई ओर वीणावादिनी एवं दांई ओर बांया घुटना मोड़ कर बैठे हुए गणेश जी स्थापित हैं। मंदिर का वितान भग्न होने के कारण उसमें बनाई गई शिल्पकारी गायब है।

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मन्दिर के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है। जिसकी ऊंचाई लगभग 8 इंच होगी तथा जलहरी निर्मित है एवं तांबे के एक फ़णीनाग भी शिवलिंग पर विराजित हैं। यह मंदिर सतत पूजित है। जब मैने गर्भ गृह में प्रवेश किया तो कुछ महिलाएं पूजा कर रही थी।

मंदिर के शिखर पर आमलक एवं कलश मौजूद है। बाहरी भित्तियों पर सुंदर प्रतिमाएं लगी हुई है। दांई ओर की दीवाल पर वीणावादनी, पीछे की भित्ती पर शंख, चक्र, पद्म, गदाधारी विष्णु तथा बांई ओर स्थानक मुद्रा में ब्रम्हा दिखाई देते हैं।

साथ ही स्थानक मुद्रा में नंदीराज, गांडीवधारी प्रत्यंचा चढाए अर्जुन, उमामहेश्वर, वरद मुद्रा में गणपति तथा विभिन्न तरह का व्यालांकन भी दिखाई देता है।

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मिथुन मूर्तियों के अंकन की दृष्टि से भी यह मंदिर समृद्ध है। उन्मत्त नायक नायिका कामकला के विभिन्न आसनों को प्रदर्शित करते हैं।

इन कामकेलि आसनों को देख कर मुझे आश्चर्य होता है कि काम को क्रीड़ा के रुप में लेकर उन्मुक्त केलि की जाती थी। यहाँ मैथुनरत स्त्री के साथ दाढी वाला पुरुष दिखाई देता है।

इससे जाहिर होता है कि यह स्थान शैव तंत्र के लिए भी प्रसिद्ध रहा होगा। प्रतिमाओं में प्रदर्शित मैथुनरत पुरुष कापालिक है। कापालिक वाममार्गी तांत्रिक होते हैं। वे पंच मकारों को धारण करते हैं - मद्यं, मांसं, मीनं, मुद्रां, मैथुनं एव च। ऐते पंचमकार: स्योर्मोक्षदे युगे युगे।

कापालिक मान्यता है कि जिस तरह ब्रह्मा के मुख से चार वेद निकले, उसी तरह तंत्र की उत्पत्ति भोले भंडारी के श्रीमुख से हुई। इसलिए कापालिक शैवोपासना करते हैं।

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ज्ञात इतिहास के अनुसार उन्तिवाटिका ताम्रलेख के अनुसार जिला का पूर्वी भाग, विशेषकर सोहागपुर के आसपास का भाग लगभग सातवी शताब्दी में मानपुर नामक स्थान के राष्ट्रकूट वंशीय राजा अभिमन्यु के अधिकार में था ।

उदय वर्मा के भोपाल शिलालेख में ई. सन् 1199 में विन्ध्य मंडल में नर्मदापुर प्रतिजागरणक के ग्राम गुनौरा के दान में दिये जाने का उल्लेख है. इससे तथा देवपाल देव (ई. सन् 1208) के हरसूद शिलालेख से यह पता उल्लेख है कि जिले के मध्य तथा पश्चिमी भागों पर धार के राजाओं का अधिकार था ।

गंजाल के पूर्व में स्थित सिवनी-मालवा होशंगाबाद तथा सोहागपुर तहसीलों में आने वाली शेष रियासतों पर धीरे-धीरे ई.सन् 1740 तथा 1755 के मध्य नागपुर के भोंसला राजा का अधिकार होता गया ।

भंवरगढ़ के उसके सूबेदार बेनीसिंह ने 1796 में होशंगाबाद के किले पर भी अधिकार कर लिया. 1802 से 1808 तक होशंगाबाद तथा सिवनी पर भोपाल के नबाव का अधिकार हो गया, किंतु 1808 में नागपुर के भोंसला राजा ने अंतत: उस पर पुन: अधिकार कर लिया।

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वर्ष 1817 के अंतिम अंग्रेज-मराठा युध्द में होशंगाबाद पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया तथा उसे सन् 1818 में अप्पा साहेब भोंसला द्वारा किए गए अस्थायी करार के अधीन रखा गया।

सन् 1820 में भोंसला तथा पेशवा द्वारा अर्पित जिले सागर, तथा नर्मदा भू-भाग के नाम से समेकित कर दिए गए तथा उन्हें गवर्नर जनरल के एजेंट के अधीन रखा गया, जो जबलपुर में रहता था।

उस समय होशंगाबाद जिले में सोहागपुर से लेकर गंजाल नदी तक का क्षेत्र सम्मिलित था तथा हरदा और हंडिया सिंधिया के पास थे।

सन् 1835 से 1842 तक होशंगाबाद, बैतूल तथा नरसिंहपुर जिले एक साथ सम्मिलित थे, और उनका मुख्यालय होशंगाबाद था. 1842 के बुंदेला विद्रोह के परिणाम स्वरूप उन्हें पहले की तरह पुन: तीन जिलों में विभक्त कर दिया गया।

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इस मंदिर के आस पास कई छतरियाँ (मृतक स्मारक) बनी दिखाई देती हैं।

मंदिर के मंडप में अन्य स्थानों से प्राप्त कई प्रतिमाएं रखी हुई हैं। जिनमें पद्मासनस्थ बुद्ध की मूर्ति भी सम्मिलित है। मंदिर का अधिष्ठान भी क्षरित हो चुका है।

इसका सरंक्षण जारी दिखाई दिया। विराट मंदिर के दर्शन करके मन प्रसन्न हो गया।

कलचुरीकालीन गौरव का प्रतीक विराट मंदिर सहस्त्र वर्ष बीत जाने पर भी गर्व से सीना तानकर आसमान से टक्कर ले रहा है। अगर इसका संरक्षण कार्य ढंग से नहीं हुआ तो यह ऐतिहासिक धरोधर धूल में मिल सकती है।

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