नमस्कार दोस्तों आज मै आप को धर्म के वास्तविकता को समझाते हुए धर्म क्या है ऐ बताऊंगा।
मन, बुद्धी, हृदय, शरीर और आत्मा मूल रूप से धर्म के पांच आधार है। धीरज मन को स्थिर करता है,त्याग बुद्धी को स्थिर करता है, प्रेम हृदय को स्थिर करता है, समर्पण शरीर के आवेगों को शान्त कर शरीर को स्थिर करता है, और न्याय आत्मा को स्थिर करता है। और जो इसका अनुसरण करते है वे सदैव एकाग्र रहते है और इसके अनुसरण से मनुष्य करुणा से भर जाता है, जिसे धर्म कहते है जो मनुष्य इसका अनुसरण करके संसार के सारे प्राणियों के प्रति दया प्रेम की भावना को प्रदर्शित करता है वो वास्तव में धर्म के अनुकुल कार्य और धर्म करता है। वास्तव में धर्म कोई जाती या संप्रदाय नहीं है। धर्म मानवता का एक दूसरे के प्रति अपना कर्म है इससे मनुष्य मानवता के कर्मो को प्रदर्शित करता है। और धर्म के रास्ते पे चलकर अपने कर्मो के द्वारा धर्म का उदाहरण प्रस्तुत करता है। तो मित्रो हमें धर्म के इन पांच आधारों के अनुरूप अपना कर्म करते रहना चाहिए हमें किसी भी परिस्थिती में इसे छोड़ना नहीं चाहिए और निरन्तर इसका पालन करते रहना चाहिए जो धर्म की रक्षा करते है धर्म उनकी रक्षा करता है। और इसका प्रमाण हमें महाभारत के इतिहास से पांडव और उनके बड़े भाई युधिष्ठिर के माध्यम से इस चीज जो सिद्ध किया उन्होंने अपने पुरे जीवन काल में धर्म के अनुसार अपना जीवन यापन किया
और रामायण में भगवान श्री राम के जीवन से हमें सीखने को मिलता है की सभी परस्थितियो में उन्होंने समाज के प्रति अपने कर्म और धर्म का पालन किया हर परिस्थिति में उन्होंने धर्म का अनुसार संसार के प्रति अपने सभी दायित्वो को पूरा किया।