यही ज़ुबान तख़्त पर बिठाती है और यही तख्ते पर चढ़ाती है

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हरेक मनुष्य के मुख में है तो वही तीन -साढ़े तीन इंच की ज़ुबान ही। है भी वह वैसे ही लोचदार और लचकदार ;उसे जिधर चाहो उधर मोड़ लो। परन्तु कुछ लोग ऐसे हें जिनके बोलने मैं सच्चाई ,सफाई ,कोमलता और मधुरता है। उनके वचन इतने प्यारे लगते हैं की मन करता है कि सुनते ही चले जाएं। उनके वाक्यों में हित और प्यार भरा होता है जिनसे उनके अनुभव तथा उनकी महानता का परिचय मिलता है। हर कोई चाहता है कि इन्हीं का राज्य हो , इन्हें ही तख़्त पर बिठा दिया जाए - वे लोगों के दिल रूपी तख़्त पर तो बैठे ही होते हैं।

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दूसरी और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बड़े कर्कश होते हैं। जिन लोगों के वचनों में न मधुरता होती है और न स्नेह झलकता है ,न हित भरा होता है न बुद्धिमत्ता ,तभी वे सबको अखरते हैं। कई ऐसे भी लोग होते हैं जो दूसरों को उत्तेजना देते हुए कहते हैं कि दुकानें जला दो ,सरकार के दफ्तरों को भस्म कर दो ,बसों के शीशे तोड़ डालो .......!ऐसे जनों के बारें में जनता सोचती है की इन् उपद्रवी लोगो को तो सरकार फांसी के तख्तों पर दे। तो देखिये इस तीन या साढ़े तीन इंच की ज़ुबान का प्रयोग अलग - अलग है। कोई तो ऐसे बोलता है कि सभी कहते हैं कि इसे तख़्त (प्रधान पद ) पर बिठा दो और दूसरा कोई ऐसे बोलता है कि सभी कहते हैं कि इसे तख्ते पर चढ़ा दो।

अंतः - 'हमारे वचन ऐसे हो जो कि सतयुगी दैवी विश्व -महाराजन के तख़्त पर बिठा सकें।'

Thanks for read this post.

Regards
@himanshurajoria
(Himanshu Rajoria)

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