Thought #6
Hindi Poetry
तलाश में भटकता रहा,
अंधेरों को पार कर,
उजाले की ओर,
संकरे रास्तों पर
कभी अकेले, कभी साथ
उन लम्हो के,
जो धुंधले से थे,
कोशिश की थी कई दफा,
उनमे जान लाने की,
कभी हाथों से छूने का
किया प्रयास, तो कभी
समेटने की कोशिश की,
बंद मुट्ठी में, लेकिन
फिसल ही गए वो लम्हे,
रेत की तरह,
कुछ न बचा अंत में,
खाली थे मेरे हाथ,
और रास्ते भी सन्नाटे
की कहानी बयां कर रहे थे,
रूठ गयी थी अब तो,
मेरी तन्हाई भी मुझसे,
पूछ रही थी, कब होगी,
समाप्त, ये कभी न
ख़त्म होने वाली, 'तलाश'।
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