उम्मीद के स्वर / रात की बात पर अब पहल चाहिए

रात की बात पर अब पहल चाहिए,
दिन की बदली हुई अब शकल चाहिए,
नींद आती नहीं है मुझे रात भर,
जागी आँखों में जागा सा कल चाहिए।

लोग हँसने लगे भोर की बात पर,
और चर्चा रहा बस यही रात भर,
तुम करो न करो मेरे साथी यकीं,
लो खिला वो उजाला वहां घाट पर।

अब उठा के उजाला निकल जाएंगे,
और दमकता हुआ एक कल लाएंगे,
तुम चलो ना चलो मेरे संग साथिया,
देखना रात के दिन बदल जाएंगे।

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