7 ऐसे स्थान जहां हनुमानजी सुनते हैं मन की बात, 7 चमत्कारी तीर्थों में पूरी होंगी 7 मनोकामनायें

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7 ऐसे स्थान जहां हनुमानजी सुनते हैं मन की बात, 7 चमत्कारी तीर्थों में पूरी होंगी 7 मनोकामनायें

ज़ी मीडिया ब्‍यूरो | Updated: Nov 25, 2015, 13:20 PM IST
7 ऐसे स्थान जहां हनुमानजी सुनते हैं मन की बात, 7 चमत्कारी तीर्थों में पूरी होंगी 7 मनोकामनायें
फाइल फोटो
रामभक्त हनुमान के देश भर में कई मंदिर हैं। लेकिन आज हम आपको उन 8 चमत्कारी मंदिरों के बारे में बतायेंगे जहां मांगी गई मुराद पूरी होने की गारंटी है। यह तीर्थ श्रीराम की नगरी अयोध्या से लेकर विन्ध्याचल पर्वत तक फैले हैं। यहां आने वाले भक्तों की झोली खाली नहीं रहती। ऐसी मान्यता है कि अगर आप इन हनुमान तीर्थ स्थलों पर भगवान श्रीराम का नाम लेकर कोई भी वरदान मांगेंगे तो वह अवश्य पूरी होगी। सबसे पहले आपको ले चलते हैं अयोध्या नगरी। यहां भगवान श्रीराम ने, हनुमान जी को अयोध्या का राजा बनाया था।
दिल्ली: रामभक्त हनुमान के देश भर में कई मंदिर हैं। लेकिन आज हम आपको उन 8 चमत्कारी मंदिरों के बारे में बतायेंगे जहां मांगी गई मुराद पूरी होने की गारंटी है। यह तीर्थ श्रीराम की नगरी अयोध्या से लेकर विन्ध्याचल पर्वत तक फैले हैं। यहां आने वाले भक्तों की झोली खाली नहीं रहती। ऐसी मान्यता है कि अगर आप इन हनुमान तीर्थ स्थलों पर भगवान श्रीराम का नाम लेकर कोई भी वरदान मांगेंगे तो वह अवश्य पूरी होगी। सबसे पहले आपको ले चलते हैं अयोध्या नगरी। यहां भगवान श्रीराम ने, हनुमान जी को अयोध्या का राजा बनाया था।

आरती के समय मांगिए मन्नत
हनुमान जी पूरी करेंगे कामना
अयोध्या के राजा कैसे बने हनुमान ?
अयोध्या के राजा भगवान राम हैं। वैसे तो आपने हनुमान जी को श्रीराम के सेवक के रुप में ही देखा है, लेकिन यहां की हनुमान गढ़ी के राजा हैं हनुमान जी। यहां की मान्यता इतनी ज़्यादा है कि भक्त दूर-दूर से हनुमान गढ़ी में विराजे हनुमानजी के दर्शन करने आते हैं। हनुमानगढ़ी मंदिर में जब हनुमान जी की आरती होती है, उस समय वरदान मांगने वाले की हर इच्छा पूरी होती है। इसलिये अगर आपके मन में भी कोई इच्छा हो तो आरती के समय, अपने मन की बात हनुमान जी से कहें। देखते ही देखते यह इच्छा पूरी हो जायेगी। कहते हैं कि लंका विजय के बाद हनुमानजी पुष्पक विमान में श्रीराम सीता और लक्ष्मण जी के साथ यहां आए थे। तभी से वो हनुमानगढ़ी में विराजमान हो गये। कहते हैं कि जब भगवान राम परमधाम जाने लगे तो उन्होंने अयोध्या का राज-काज हनुमान जी को ही सौंपा था। कहते हैं कि तभी से हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम का राज काज संभाल रहे हैं।

कानपुर में विराजे पंचमुखी हनुमान
हनुमान और लव-कुश में हुआ था युद्ध
कानपुर के पंचमुखी हनुमान की लीला बड़ी निराली है। यहीं पर हनुमान जी और लवकुश का युद्ध हुआ था। बाद में युद्ध में परास्त होने के बाद, माता सीता ने हनुमान जी को यहां भोजन कराया था। कहते हैं कि माता सीता ने हनुमान जी को लड्डु खिलाये थे, इसीलिये इस मंदिर में भी उन्हें लड्डुओं का ही भोग लगता है। यहां आने वाले भक्तों की सारी इच्छायें सिर्फ लड्डू चढ़ाने से ही पूरी हो जाती हैं। कानपुर के पंचमुखी हनुमान की खासियत यह है कि यहां भक्तों को कुछ मांगना नहीं पड़ता बल्कि अंतर्यामी हनुमान मन की जानकर, उसे स्वयं ही पूरा कर देते हैं।

प्रयाग में संगम किनारे मूर्छित हनुमान
सीता जी के सिंदूर से मिला दूसरा जीवन
पवनपुत्र हनुमान सदा ही श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी की सेवा में हाथ जोड़े बैठे रहते हैं। लेकिन प्रयाग में संगम किनारे हनुमान जी लेटे हुए हैं। कहते हैं कि रावण के साथ लंका युद्ध में हनुमान जी काफी थक गये थे। इसीलिए शक्तिहीन होकर यहां लेट गये। हनुमान जी संगम किनारे भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लेने आये थे। लेकिन वह इतने कमजोर हो गये थे कि उन्होने प्राण त्यागने का निर्णय लिया। तभी मां सीता आईं और उन्होने सिंदूर का लेप लगाकर उन्हे नया जीवन दान दिया। यहां जो भी भक्त, हनुमान जी को लाल सिंदूर का लेप करते हैं, उसकी सभी कामनायें पूरी होती हैं। यहां लाल ध्वजा चढ़ाने वालों की भी हर इच्छा पूरी होती है। कहते हैं कि यहां लेटे हुये हनुमान जी को सिंदूर का लेप लगाने से, भक्तों के जीवन में नई आशा का संचार होता है।

बरगद से प्रकट हुए हनुमान
खंडित प्रतिमा की होती है पूजा
बरगद के पेड़ में तो भगवान विष्णु की पूजा होती है। शायद इसीलिये राम भक्त हनुमान जी चंदौली के कमलपुरा गांव में बरगद के पेड़ से प्रकट हुये थे। वैसे तो खंडित प्रतिमा की पूजा सनातन धर्म में नहीं होती है लेकिन बरगद वाले हनुमान खंडित है। इनके प्रति भक्तों की श्रद्धा भी देखते बनती है। ऐसी मान्यता है कि बरगद वाले हनुमान स्वयंभू हैं और ये भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब यह हनुमान जी प्रकट हुए थे तब उनके माथे पर सोने का मुकुट था। लेकिन एक व्यापारी ने सोने के लालच में हनुमान जी का मस्तक काट लिया। प्रतिमा से खून बहता देख, व्यापारी डर गया और वह मस्तक समेत मुकुट लेकर भागने लगा। लेकिन व्यापारी मुकुट लेकर भाग नहीं सका क्योंकि व्यापारी का जहाज डूब गया। तब से इस हनुमान की खंडित प्रतिमा की पूजा हो रही है। कमलपुरा गांव के लोग सुबह-शाम हनुमान जी की आरती करते हैं। शनिवार को लाल फूल और सिंदूर चढ़ाते हैं। हनुमान जी का यह स्वरुप पर्यावरण संरक्षण का भी प्रतीक है। अगर आप और हम पेड़ों में ईश्वर के दर्शन करेंगे तभी प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को बचा पाएंगे।

चर्म रोग दूर करते हैं झांसी के हनुमान
चमत्कारी है मंदिर हनुमान मंदिर का पानी
झांसी के हनुमान मंदिर में हर ओर पानी ही पानी बिखरा रहता है। इस मंदिर में पानी कहां से आता है कोई नहीं जानता। लेकिन हनुमान जी के इस प्राचीन मंदिर के प्रति भक्तों की आस्था देखते ही बनती है। यहां हनुमान जी की पूजा पाठ की सारी प्रक्रियायें पानी के बीच ही संपन्न होती हैं। कहते हैं कि इस मंदिर के पानी में औषधीय तत्व है। इससे चर्म रोग दूर होता है। कुछ लोगों का कहना है कि उनकी आंखों की रोशनी भी इस पानी से वापस आ गयी। कहते हैं कि एक बार पूजा के दौरान प्रतिमा की आंखों से ही आंसू टपकने लगा। बाद में भक्तों ने कीर्तन भजन किया तब आंसू बहने बंद हुये।

गाजीपुर में दिन ब दिन बढ़ रहे हनुमान
हनुमान जी बहुत शक्तिशाली हैं। वायु के वेग से चलने वाले पवनपुत्र कहीं भी जा सकते हैं। गाजीपुर का यह मंदिर भी हनुमान जी की इसी शक्ति का साक्षी है। कहते हैं कि यहां के हनुमान जी पाताल का सीना चीर कर बाहर निकले थे जबकि एक और मान्यता यह है कि इस मंदिर की स्थापना महर्षि विश्वामित्र के पिता ने की थी। इतिहासकारों के मुताबिक पहले गाजीपुर का नाम गांधीपुर था। ऐसी मान्यता है कि गाजीपुर के हनुमान जी लगातार बढ़ रहे हैं। उनकी प्रतिमा का आकार हर दिन बढ़ता जा रहा है। पहले इस प्रतिमा का सिर्फ मुखड़ा ही दिखता था। अब प्रतिमा के बाकी के हिस्से के भी दर्शन होने लगे हैं।

विन्ध्याचल में पेड़ से प्रकट हुए हनुमान
भगवान कहां प्रकट हो जायें कोई नहीं जानता क्योंकि उनकी लीला है न्यारी। विन्ध्याचल पर्वत के पास विराजते हैं बंधवा हनुमान। जी हां यहां भक्त इन्हें प्रेम से बंधवा हनुमान के नाम से पुकारते हैं। हनुमानजी की यह प्रतिमा यहां कब से हैं कोई नहीं जानता। लेकिन श्रद्धालुओं का कहना है कि बालरुप में हनुमान जी सबसे पहले एक वृक्ष से प्रकट हुये थे। ऐसी मान्यता है कि यह हनुमान जी अपने आप बढ़ रहे हैं। शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिये ज्यादातर भक्त, बंधवा हनुमान की शरण में आते हैं। कहते हैं कि जो भक्त शनिवार को लड्डू, तुलसी और फूल चढ़ाता है, उस पर से साढ़ेसाती का कष्ट कुछ कम हो जाता है। बालरुप में विराजने वाले बंधवा हनुमान का स्वरुप भी बच्चों जैसा है। तभी तो इनके रुप को देखकर किसी के मन में ममता जागती है तो कोई उनके रुप का दर्शन करके सांसारिक मोह माया से मुक्ति पा लेता है।

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