एक आग मेरे सीने में आज भी है
कुछ अधूरी धड़कने कुछ अधूरे पल
कुछ एहसास के फ़साने कुछ वो अधूरे पेमाने
कुछ क़िस्से जो मुकम्मल हो ना सके
बस राहों पर इंतहा की आस में लगे रहे
एक तड़प उसकी मेरे जिस्म में आज भी है
उसकी हवालात का क़ैदी, mirza आज भी है
#tarun_ke_shabd