तन्हाई में युहीं बैठ, पहुंचे थोड़ा फ्लैशबैक में, तो यादों की संदूकड़ी दिखी,
झाँका अंदर तो मिली, लम्हों पर थी धूल जमी |
एक-एक कर यादें होने लगी सब ताज़ा, धूल जो छंटने लगी...
लम्हे जो खुलके खूब जिए थे, हँसे, रोये और यादों में सिये थे... लड़ी वो अब खुलने लगी |
सीप जो इकठ्ठा किया करते थे, कुछ बटोरे कंचे, और एक ताश की गड्डी मिली….
एक कागज़ की नाव, लकड़ी की रेल, और कौड़ियां कुछ बिखरी पड़ी मिली...
क्लास बंक कर, टपरी पर जो नए दोस्त बनाये, उनकी भी एक लिस्ट मिली |
कुछ पुराने पोस्ट कार्ड्स, और लव लेटर्स भी ताज़ा हुए..
और कुछ चाहत के किस्से भी दोबारा ज़ेहन में काबिज़ हुए..
रूठी गर्लफ्रेंड, हार्ट ब्रेक और किताब में रक्खे, गुलाब भी शामिल हुए |
इन यादों ने ऐसा जकड़ा, मन हुआ कुछ देर और रुकें...
लेकिन र्तमान की घंटी बजी, तो संदूकड़ी बंद कर रखनी पड़ी..
दोबारा फिर किसी दिन बैठेंगे संदूकड़ी लेकर, और खंगालेंगे उन लम्हों को लम्हों को जिनसे यादों की संदूकड़ी बानी |