आज़ादी
सत्ता के बंद पिंजरे में चिड़ियां चीख़ रही थी। पिंजरे में बंद चिड़ियां आज़ादी की चाह में पूरी कोशिश से अपने पंख फड़फड़ा रही थी चीख़ रही थी चिल्ला रही थी। चिड़ियों की जुंबा सत्ता के कानों में चुभ रही थी आखिर उसे आज़ादी मिली पिंजरे वाली सत्ता से पिंजरा हट गया और पिंजरे वाली सरकार की जगह दूसरी सत्ता आ गयी। अब चिड़ियां चहक सकती थी अपने पंख फड़फड़ा सकती थी। कुछ वक्त बाद नयी सत्ता को चिड़ियाओं का चहकना खटकने लगा। उसने उनकी जुबां पर ताला लगाना शुरू कर दिया कुछ की जुबां भी काटी गयी कुछ के पंख। एक वक्त आएगा जब नयी सत्ता को वही भायेंगे जो चहकना और फड़फड़ाना न जानता हो जो जानता हो उसके पंख और जबां काट दिए जाएंगे।
क्या हमें पिंजरे से मिली आज़ादी हम फिर से खो रहें हैं?